Thursday, October 15, 2009

हिन्द स्वराज में दुनिया के सभी समस्याओं का समाधान नहीं है – गौतम चौधरी

हिन्द स्वराज पर टिप्पणी करने से पहले इस देश के अतीत और अपने पारिवारिक पृष्ठभूमि को खंगाला तो लगा कि जो गांधी कह रहे हैं वह हम पीढियों से करते आ रहे हैं। मेरा ननिहाल दरभंगा से सीतामढी की ओर जाने वाली छोटी लाईन के रेलवे स्टेषन कमतौल में है। मेरे मामा साम्यवादी थे और भारतीय कौम्यूनिस्ट पार्टी से जुडे थे। मेरा बचपन वहीं बीता लेकिन बीच बीच में अपने घर और अपने पिताजी के नलिहाल कैजिया भी जाता आता रहता था। कैजिया के बडे किसान रामेश्वर मिश्र हमारी दादी के भाई थे। कैंजिया में रहने से सामंती प्रवृति से परिचय हुआ और कमतौल में रहने से साम्यवाद का ककहरा पढा। फिर मेरे दादा समाजवादी धरे से जुडे रहे और उस जमाने के समाजवादी कार्यकर्ता सिनुआरा वाले गंगा बाबू हमारे यहां आया जाया करते थे। इन तमाम पृष्ठिभूमि में मेरे व्यक्तित्व का निर्माण हुआ है। डॉ0 राम मनोहर लोहिया की किताब से मैं बचपन से परिचित हूं। हिन्द स्वराज मैंने बाद में पढी। कुल मिलाकर जिस प्रकार के पृष्ठभूमि से मैं आता हूं उसमें गांधी से कही ज्यादा अपने आप को लोहिया के निकट पाता हूं। हिन्द स्वराज से असहमत नहीं हूं लेकिन गांधी के इस गीता पर पूरे पूरी सहमत भी नहीं हूं। मेरी दृष्टि में गांधी का चिंतन जडवादी और भौतिकवादी जैन चिंतन से प्रभावित है। जैन चिंतन के उस धारा से तो सहमत हूं कि दुनिया एक ही तत्व का विस्तार है लेकिन मैं ऐसा नहीं मानता कि दुनिया जैसी है वैसी ही रहेगी और अनंतकाल तक चलती रहेगी।

सच पूछो तो गांधी के चिंतन में भारी द्वंद्व है। गांधी ने हिन्द स्वराज में अंग्रेजी सम्यता को बार बार नकारा है लेकिन जब भारत के प्रधानमंत्री के पद पर चयन की बात होती है तो गांधी अंग्रेजी सभ्यता के पैरोकार पं0 जवाहरलाल नेहरू का चयन करते हैं। इसे आप क्या कहेंगे? जिस अहिंसा को गांधी और आज के गांधीवादी हथियार बनाने पर तुले हैं वह अपने आप में एक माखौल बन कर रह गया है। अब देखिए न संयुक्त राज्य अमेरिका देखते देखते दो सम्प्रभु राष्ट्र को मिट्टी में मिला दिया और उस देश का राष्ट्रपति कहता है कि हम तो गांधी के बोए बीज हैं। कोई बताए कि क्या गांधी के अहिंसा से भारत को आजादी मिली? पूरी दुनिया अगर एक ओर खडी होकर यह कहे कि गांधी के अहिंसा ने भारत को आजादी दिलाई तो भी मैं यह मानने के लिए तैयार नहीं होउंगा कि गांधी के अहिंसक सिंध्दांत के कारण भारत आजाद हुआ। ओबामा के द्वारा कहा गया कि गांधी के साथ रात का भोजन करना चाहुंगा यह एक छालावा है। ओबामा ही नहीं, अमेरिका का कोई भी राष्ट्रपति अपने मन की बात न कहता है और न ही कर सकता है। वह अमेरिका की बात करता है और अमेरिका का मतलब है उत्पाद, उपभोग और विनिमय, जहां केवल और केवल उपभोगतावाद हावी है।

गांधी अपनी किताब हिन्द स्वराज में लिखते हैं कि हम भारत को इग्लैंड नहीं बनाना चाहते हैं। फिर लिखते हैं कि इग्लैड का पार्लियामेंट बांझ और वेश्या है। औद्योगिकरण को हिंसा मानने वाले गांधी भारत को जिस सांचे में ढालना चाहते हैं वह सांचा खतरनाक है और भारत को उस ढांचे में ढाला ही नहीं जा सकता है। हां, स्वयं पर नियंत्रण, संयम आदि गांधी के आदर्श तो ठीक हैं लेकिन इसका घालमेल राजनीति में नहीं किया जा सकता है। किसी देश पर कोई न कोई आक्रमण करता ही है। राष्ट्र को क्षति पहुंचाने वाली शक्ति से लोहा लेने के लिए शक्ति का संग्रह जरूरी है। इसके लिए संयम भी जरूरी है लेकिन आज अहिंसा को जिस रूप में प्रचारित और प्रसारित किया जा रहा है, उससे एक पूरे तंत्र को चला पाना संभव नहीं है। कोई आक्रांता हमारे संसाधनों को लूटे और हम भूखे मरें फिर यह कहें कि अहिंसा ही मेरा परम धर्म है तो नहीं चलेगा। भारत की गुलामी का सबसे बडा कारण भारतीय समाज का अहिंसक होना है। हमने अपने समाज की संरचना इस प्रकार कि की वह संतुष्ट होता चला गया। एक गांव अपने आप में देश हो गया। इसके फायदे तो हैं लेकिन इसस घाटा भी कम नहीं है। फिर एक गांव को दुसरे गांव से मतलब ही नहीं रहा। देश के दुश्मन आए एक गांव पर आक्रमण किया और दुसरा गांव देखता रहा। नालंदा का विश्वविद्यालय इसलिए जला क्योंकि उस विश्वविद्यालय के चारो ओर विश्वविद्यालय के हित की चिंता करने वाले लोग नहीं थे। विश्वविद्यालय से स्थानीय जन को कोई फायदा नहीं पहुंच रहा था लेकिन चारो तरफ के किसानों को अपने फसल का आधा भाग विश्वविद्यालय को देना पडता था। फिर पडोस के किसान विश्वविद्यालय के हित की चिंता क्यों करें? गांधी का दर्शन कुछ इसी प्रकार का दर्शन है। फिर गांधी संस्कृति और सम्यता को घालमेल करते हैं। इसलिए इस दिष को सबसे अधिक समझने वाला कोई है तो वह डॉ0 राम मनोहर लोहिया है। गांधी के त्याग और तपष्या के कारण लोहिया ने गांधी का इज्जत तो किया है लेकिन लेहिया ने गांधी का कभी समर्थन नहीं किया। फिर इस देश को और बढिया ढंग से समझा तथा समझाने का प्रयास किया पं0 दीनदयाल उपाध्याय ने। यह देश संघीय संरचना का देश हो ही नहीं सकता है। मैं जब उत्तराखंड में था तो वहां भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता मनोहर कांत ध्यानी के संपर्क में आया। उत्तराखंड के ध्यानी तेलंग ब्राह्मण हैं। वे आज से लगभग 1000 वर्श पहले वैष्णव धर्म के प्रचार के लिए गढवाल आए। पं0 ध्यानी का कहना है कि दक्षिण से चलकर एकदम निर्जन भूभाग में आना और फिर वहां एक सांस्कृतिक संरचना और धार्मिक आस्था की रचना करना यह एकात्मता को प्रदर्षित करता है। इसलिए इस देश को संघों का समूह नहीं कहा जा सकता है यह देश एकात्म संरचना का देश है क्योंकि इस देश में जो सांस्कृतिक संरचना दक्षिण में है वही उत्तर में भी है। हो सकता है कि कुछ लोगों ने अपनी मान्यता बदल ली हो लेकिन आज भी उनके अंदर वो मान्यताएं लगातार जोड मारती है जो उनको अपने पूर्वजों से प्राप्त हुआ है। तभी तो मुसलमान मजार को पूजने लगे हैं और ईसाइयों ने मांता मरियम का मंदिर बनाना प्रारंभ कर दिया।

गांधी सत्य की बात करते है। सत्य क्या है? इस पर भयानक विवाद है। हम किसी वस्तु को देखते हैं फिर उसकी व्याख्या करते हैं। सबसे पहले तो किसी वस्तु को हम पूरा देख नहीं पाते, फिर शब्दों में वह सामर्थ नहीं है कि वह किसी वस्तु की सही व्याख्या कर ले। तो फिर गांधी किस सत्य की बात कर रहे हैं? सत्य एक सापेक्ष सत्य है। फिर सत्य को हम कैसे आत्मसात कर सकते हैं। बडी मषीन और उद्योगों को गांधी हिंसा मानते थे। आज के परिप्रेक्ष्य में ऐसा संभव है क्या? गांधी का चिंतन सवासोलह आने अतीत जीवी है। जो लोग आज के समय में गांधी की प्रसांगिकता के गीत गा रहे हैं वे मर्सिया गाने के अलावा और कुछ भी नहीं कर रहे हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा कहते हैं कि आज के अमेरिका की जड भारत में है। ओबामा किस अमेरिका की बात कर रहे हैं, उनसे यह सवाल पूछा जाना चाहिए। अगर वे अमेरिका देश की बात कर रहे हैं तो उसकी जड भारत में नहीं इग्लैंड में होनी चाहिए। हां, ओबामा को राष्ट्रपति बनाने वाले अमेरिका की जड भारत में हो सकता है। लेकिन ओबामा के महज राष्ट्रपति बन जाने से क्या अमेरिका में परिवर्तन आ जाएगा? अमेरिका एक ऐसा देश बन गया है जहां स्वंग गांधी जाकर बस जाए तो वे गांधी नहीं रह सकते। आज का अमेरिका दुनियाभर के भौतिकवादियों, उपभोक्तावादियों का मक्का और लेनिनग्राद बनकर उभरा है। भारत को बडगलाने के लिए अमेरिकी व्यापारी ओबामा के मुह से गांधी गांधी कहलवा रहे हैं।

गांधी के हिन्द स्वराज से दिशा ली जा सकती है लेकिन वह आदर्श नहीं हो सकता है। इस देश को खडा करना है तो गांधी से ज्यादा महत्व का विचार लोहिया का है, उसे अपनाना होगा, फिर दीनदयाल ने उसे और ज्यादा स्पष्ट कर दिया है। देश के संसाधनों पर राजसत्ता का नहीं समाज का अधिकार होना चाहिए। समाज का प्रतिनिधित्व करने वाला संगठन सरकार पर नियंत्रण रखे। सरकार का काम वाह्य सुरक्षा है तथा नीतियों का निर्धरण है। तेल बेचना, गाडी चलाना और बैंक चलाना सरकार का काम नहीं है। ऐसा समझ कर देश को खडा करना चाहिए। गांधी को पूरे पूरी कदापि ग्रहण नहीं किया जा सकता है और न ही हिन्द स्वराज में दुनिया के सभी समस्याओं का समाधान है। जैसे एक कर्मकांडी ब्रांह्मण दुनिया के सभी समस्याओं का समाधान वेद में ढुढता है और मौलवी कुरान तथा साम्यवादी दास कैपिटल में उसी प्रकार गांधी के हिन्द स्वराज में गांधीवादी सभी समस्या का समाधान ढुंढने का प्रयास करने लगे हैं जिसे सही नहीं ठहराया जा सकता है। संक्षेप में दुनिया को शांति पहुंचाने वाला दर्शन जिसे कहा जाता है वह बौध दर्शन दुनिया में सबसे ज्यादा हिंसा करने वाला दर्शन साबित हो चुका है। जैनियों ने हजारों ब्रांह्मणों की हत्या की है और ब्रांह्मणों ने हजारों बौध्द तथा जैनियों को मौत के घाट उतारा है। इस परिस्थिति में गांधी को हम कहां प्रसांगिक मानते हैं इसपर लंबी बहस की गुंजाईस है। ऐसे मैं गांधी के हिन्द स्वराज में मानव का हित जरूर देखता हूं लेकिन दुनिया की समस्याओं का समाधान हिन्द स्वराज से नहीं हो सकता है। न ही भारत को उसके आधार पर खडा ही किया जा सकता है।

Friday, October 2, 2009

चीनी कुटनीतिक आक्रमण और साम्यवादी खटराग - गौतम चौधरी

खबरदार चीन के खिलाफ कुछ बोले तो जन-अदालत लगाकर नाक, कान, हाथ, पैर आदि काट लिए जाएंगे। वर्ग-शत्रु घोषत कर अभियान चलाया जाएगा। जुवान खोली तो हत्या भी की जा सकती है। याद रहे चाहे चीन कितना भी भारत के खिलाफ अभियान चलाये कोई कुछ कह नहीं सकता है, बोल नहीं सकात है। इस देश में साम्यवादियों के द्वारा चीनी कानून लागू किया जाएगा। पश्चिम बंगाल की तरह भारतीय लोकतंत्र की हत्या होगी और उसके स्थान पर बस साम्यवादी गिरोह देश पर शासन करेंगे। सबकी जुबान बंद कर दी जाएगी और कोई चूं शब्द बोला तो उसे गरीबों का दुश्मन घोषित कर हत्या कर दी जाएगी। चीनी साम्यवादी आतंक के 60वें सालगिरह पर यह फरमान जारी किया है देश के साम्यवादियों ने। साम्यवादी चरमपंथी 3 अक्टूबर से चीन के खिलाफ बोलने वालों को मौत के घाट उतारने का अभियान चलाने वाले हैं। भले पश्चिम बंगाल में माओवादियों और साम्यवादी सरकार के बीच दोस्ताना लडाई चल रही हो लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर दोनों के बीच समझौता है। चीन को अपना आदर्श मानने वाली कथित लोकतंत्रात्क पार्टी माक्र्सवादी काम्यूनिस्ट पार्टी और भारतीय काम्यूनिस्ट पार्टी (माओवादी) एक ही आका के दो गुर्गे हैं। भले चीन भारत के खिलाफ कूटनीतिक युद्ध लड रहा हो लेकिन इन दोनों साम्यवादी धरों का मानना है कि चीन भारत का शुभचिंतक है लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारत का नम्बर एक दुश्मन।

चीन भारत के खिलाफ पूरी ताकत से कूटनीतिक अभियान चला रखा है लेकिन भारतीय साम्यवादी, चीनी वकालत पर आमादा है। देश के सबसे बडे साम्यवादी संगठन के नेता का. प्रकाश करात ने चीन के बनिस्पत देश के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को ज्यादा खतरनाक बताया है। अपनी पार्टी के मुखपत्र पीपुल्स डेमोक्रेसी के ताजा अंक में उन्होंने लिखा है कि देश की कारपोरेट मीडया, संयुक्त राज्य अमेरिका, दुनिया के हथियार ऐजेंट और आरएसएस के गठजोड के कारण चीन के साथ भारत का गतिरोध दिखाई दे रहा है, वास्तव में ऐसा कुछ भी नहीं है। का. करात के ताजे आलेख का कुल लब्बोलुआब है कि चीन तो भारत का सच्चा दोस्त है लेकिन आरएसएस के लोग देश के जानी दुश्मन है। शुक्र है कि का. करात ने अपने कार्यकर्ताओं को आरएसएस के खिलाफ अभियान चलाने का फरमान जारी नहीं किया है। हालांकि साम्यवादियों के सबसे बडे दुश्मन के रूप में आरएसएस चिन्हित है। गाहे बगाहे ये उनके खिलाफ अभियान भी चलाते रहते हैं। अभी हाल में ही संत लक्ष्मणानंद की हत्या साम्यवादी ईसाई मिशनरी गठजोड का प्रमाण है। केरल में, आंध्र प्रदेश में, उडीसा में, बिहार और झारखंड में, छातीसगढ में, त्रिपुरा में यानी जहा साम्यवादी हावी हैं वहां इनके टारगेट में राष्ट्रवादी हैं। साम्यवादी कहे या नहीं कहे लेकिन आरएसएस कार्यकर्ताओं की हत्या इनके एजेंडे में शमिल है। देश की स्मिता की बात करने वालों को अमेरिकी एजेंट ठहराना और देश के अंदर साम्यवादी चरंपथी, इस्लामी जेहादी तथा ईसाई चरमपंथियों का समर्थन करना इस देश के साम्यवादियों की कार्य संस्कृति का अंग है।

चीनी फरमान से अपनी दिनचर्या प्रारंभ करने वाले ये वही साम्यवाद हैं जिन्होंने सुभाष चंद्र बोस को तोजो का कुत्ता कहा था, ये वही साम्यवादी हैं जिन्होंने दिल्ली दूर और पेकिंग पास के नारे लगाते रहे हैं, ये वही साम्यवादी हैं जिन्होंने सन 62 की लडाई में आयुध्द कारखानों में हडताल का षडयंत्र किया था, ये वही साम्यवादी हैं जिन्होंने कारगिल की लडाई को भाजपा संपोषित षडयंत्र बताया था, ये वही साम्यवादी हैं जिन्होंने पाकिस्तान के निर्माण को जायज ठहराया था, ये वही साम्यवादी है जो देश को विभिन्न संस्कृति का समूह मानते हैं, ये वही साम्यवादी हैं जो यह मानते हैं कि आज भी देश गुलाम है और इसे चीन की ही सेना मुक्त करा सकती है, ये वही साम्यवादी हैं जो बाबा पशुपतिनाथ मंदिर पर हुए माओवादी हमले का समर्थन कर रहे हैं, ये वही साम्यवादी हैं जो महान संत लक्ष्मणानंद सरस्वती को आतंकवादी ठहरा रहे हैं, ये वही साम्यवादी हैं जो बिहार में पूंजीपतियों से मिलकर किसानों की हत्या करा रहे हैं, ये वही साम्यवादी हैं जिन्होंने महात्मा गांधी को बुर्जुवा कहा लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक सघ के माथे ऐसे कलंक नहीं लगे है। फिर भी साम्यवादी करात को चीन नजदीक और राष्ट्रवादी दुश्मन लगने लगे हैं। यह करात नहीं चीन का एजेंडा भारतीय मुंह से कहलवाया जा रहा है। आलेख की व्याख्या से साफ लगता है कि करात सरीखे साम्यवादी चीनी सहायता से भारत के लोकतंत्र का गला घोटना चाहते हैं। भारत की काम्यूनिस्ट पार्टी माओवादी ने अपने ताजे बयान में कहा है कि हमें किसी देश का एजेंट नहीं समझा जाये लेकिन उसके पास से जो हथियार मिल रहे हैं वे चीन के बने हैं। इसका प्रमाण विगत दिनों मध्य प्रदेश पुलिस के द्वारा चलाये गये अभियान के दौरान मिल चुका है। चीन लगातार अरूणांचल, कश्मीर, सिक्किम पर विवाद खडा कर रहा है, नेपाल में भारत के खिलाफ अभियान चला रहा है, पाकिस्तान को भारत के खिलाफ भडका रहा है, अफगानिस्तान में तालिबानियों को सह दे रहा है फिर भी का0 करात के नजर में चीन भारत का सच्च दोस्त है। आज पूरी दुनियां ड्रैगन के आतंक से भयभीत है लेकिन भारतीय साम्यवादियों को ड्रैगन का खौफ नहीं उसकी पूंछ पर लगी लाल झंडी दिखई दे रही है। पेकिंग को साम्यवादी मक्का और चीन को साम्यवादी शक्ति का केन्द्र मानने वाले भारतीय साम्यावादी गिरोह के सरगना का आलेख इस मायने में भी महत्वपूर्ण है कि एक ओर जहां चीन अपने आतंक और साम्यवादी साम्राज्य का 60 वां वर्षगांठ मना रहा है वही दूसरी ओर चीन भारत के उत्तरी सीमा पर दबाव बढा रहा है। ऐसे में का. करात के आलेख के राजनीतिक और कूटनीतिक अर्थ लगया जाना स्वाभाविक है। आलेख में करात लिखते हैं कि पष्चिमी देश आरएसएस के माध्यम से षडयंत्र कर भारत को चीन के साथ लडाना चाहता है।

करात के इस आलेख की कूटनीतिक मीमांसा की जाये तो यह लेख केवल करात का लेख नहीं माना जाना चाहिए। इसके पीछे आने वाले समय में चीन की रणनीति की झलक देखी जानी चाहिए। अगर चीनी विदेश मंत्रालय के भारत पर दिये गये बयान को देखा जाये तो कुछ इसी प्रकार की बातें चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने भी विगत दिनों कही है। चीनी विदेश मंत्रालय कहता है कि भारत की मीडिया पूंजीपरस्तों के हाथ का खिलौना बन गयी है। यही करण है कि भारत और चीन के संबंधों को बिगाडने का प्रयास किया जा रहा है। चीन ऐसा कुछ भी नहीं कर रहा है जिससे भारत को डरना चाहिए। लेकिन कार्यरूप में चीनी सेना ने भारतीय सीमा का अतिक्रमण किया। भारतीय सीमा के अंदर आकर पत्थडों पर चीन लिख, भारतीय वायु सीमा का चीनी वायु सेना ने उलंघन किया, दलाई लामा के तमांग प्रवास पर चीन ने आपति जताई और अब कष्मीरियों को को अलग से चीनी बीजा देने का मामला प्रकाश में आया है। ये तमाम प्रमाण भारत के खिलाफ चीनी कूटनीतिक आक्रमण के हैं, बावजूद साम्यवादी करात के लिए चीन भारत का सच्च दास्त है। करात अपने ताजे आलेख से केवल अपना विचार नहीं प्रकट कर रहे हैं अपितु संबंधित संगठनों को धमका भी रहे हैं।

लेकिन करात को भारत में रह कर चीन की वकालत नहीं करनी चाहिए। इस देश के अन्न और पानी पर पलने वाले करात को यह समझना चाहिए कि चीन एक आक्रामक देश है। चीन से आज दुनिया भयभीत है। चीन के साथ जिस किसी देश की सीमा लग रही है उसके साथ चीन का गतिराध है। चीनी दुनिया में चौधराहट स्थापित करने और साम्यवादी साम्राज्य के विस्तार के लिए लगातर प्रयत्नशील है। ऐसी परिस्थति में चीन भारत जैसे लोकतांत्रिक देश का मित्र कैसे हो सकता है। चीन भारतीय लोकतंत्र से भयभीत है। उसे लग रहा है कि भातीय हवा अगर चीन में वही तो चीनी साम्यवादी साम्राज्य ढह जाएगा। इसलिए चीन भारत को या तो समाप्त करने की रणनीति बना रह है या साम्यवादी सम्राज्य का अंग बनाने की योजना में है। कुल मिलाकर प्रकाश करात चाहे जितना चीन की वकालत कर लें लेकिन चीन तो चीन है जिसके बारे में नेपोलियन ने कहा था इस राक्षस को सोने दो अगर जगा तो यह दुनिया के लिए खतरा उत्पन्न करेगा। करात साहब विचारधारा अपने पास भी है। लाल गुलामी छोड कर वंदेमातरम बोलने की आदत डालिए.