Wednesday, April 8, 2009

सीपीएम का सांप्रदायिक चेहरा उजागर - डॉ. कुल्दिप्चन्द अग्निहोत्री

सीपीएम का व्यक्तित्व शुरू से ही दोहरा रहा है । यह सीपीएम का दोष नहीं है बल्कि उसके हार्ड वेयर का भीतरी दोष ही है । सीपीएम स्वयं का प्रगतिशील और प्रगतिवादी कहता है । उसका मानना है कि प्रगतिवाद के रास्ते में सबसे बड़ा रोड़ा सम्प्रदाय अथवा मजहब है । इसलिए जहॉं भी साम्यवादियों की सत्ता आती है तो वे सबसे पहले वहॉं के विभिन्न मजहबों अथवा सम्प्रदायों को नष्ट करने का प्रयास करते हैं । माक्र्सवादी ऐसा स्वीकार करते है कि मजहब अथवा सम्प्रदाय के आधार पर व्यक्ति की जो पहचान बनती है वह प्रगति के रास्ते में सबसे बड़ा रोड़ा होती है । इसके विपरीत व्यक्ति की पहचान उसके वर्ग के आधार पर होनी चाहिए । वर्ग की यह पहचान संघर्ष की धार को तेज करती है जिससे प्रगतिवादी समाज की स्थापना होती है । भारत के माक्र्सवादी भी मोटे तौर पर इस सिद्वांत को स्वीकार करते हैं और उन्हें ऐसा करने का पूरा अधिकार भी है । भारत की मिट्टी की यही खूबी है कि यहॉं विभिन्न विचारधाराओं, और दर्शन शास्त्रों को विकसित होने का पूरा अधिकार है । परन्तु सीपीएम की यह दिक्कत है कि इस वैचारिक आधार पर वे इस देश की सत्ता हासिल नहीं कर सकते । यही कारण है कि साम्यवादी आंदोलन सिकुड़ता सिकुड़ता अन्तत: पश्चिमी बंगाल और केरल तक सीमित हो गया है । पश्चिमी बंगाल में भी कामरेडों के भ्रष्टाचार और जनविरोधी आचरण के कारण, उनका दुर्ग हिलने लगा है । केरल में तो पहले ही वे पॉच साल के अन्तराल के बाद सत्ता में आ पाते हैं । सत्ता प्राप्त करने की हड़बड़ी में सीपीएम ने अब विशुद्व अवसरवादी रास्ता अख्तियार करने का निर्णय कर लिया लगता है । यही कारण है कि सीपीएम लोकसभा के होने वाले चुनावों में केरल में मुस्लिम आतंकवादी संस्थाओं के साथ चुनाव समझौता कर रही है । सीपीएम भी जानती है कि यदि कट्रतावादी मुस्लिम संस्थाओं और आतंकवादी मुस्लिम संगठनों की मदद ली जाती है तो शायद कुछ सीटें तो पार्टी की झोली में आ जायेगी परन्तु उससे देश को बहुत नुक्सान होगा । साम्प्रदायिकता के जहर से राष्ट्रीयता खंडित होती है- ऐसा कामरेड भली भांति जानते हैं । परन्तु लगता है दिल्ली की सत्ता में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करने की सीपीएम को इतनी व्याकुलता है कि वह साम्प्रदायिकता के इस अजगर को साथ लेने से भी गुरेज नहीं कर रही । प्रसंग केरल का है । केरल में सीपीएम ने अबदुल निसार मदनी की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी से चुनावी समझौता किया है । मदनी कोयम्बटुर बम बलास्ट के मुख्य अभियुक्त थे । उनके लश्कर और इंडियन मुजाहदीन से गहरे रिश्ते हैं । वैचारिक स्तर पर उनकी पार्टी मुसलमानों को अलग राष्ट्र के रूप में मानती है और वे स्वंय को भारत का विजेता मानने का स्वप्न पालते हैं । मदनी और उनकी पार्टी मानती है कि मुसलमानों ने भारत को जीता था और इस पर अपना राज्य स्थापित किया था । मुसलमानों से अंग्रेजों ने भारत का राज्य छीन लिया लेकिन दो सौ साल बाद वे यहॉं से जाते समय राज्य भारतीयों को सौंप कर चले गये, मुसलमानों को नहीं । मदनी और उनके अनुयायी अब यह राज्य आतंक और शस्त्र बल से प्राप्त करना चाहते हैं । यह अलग बात है कि मदनी और उन जैसे दूसरे लोग भारत पर आक्रमणकारी मुसलमानों की सन्तान नहीं हैं बल्कि वे भारतीयों में से ही परिवर्तित हुए हैं । परन्तु मदनी अपनी पहचान उन आक्रमणकारी मुस्लिम आक्रांताओं से ही जोड़ते है। सीपीएम इसी मदनी से चुनाव में समझौता कर रही है । इससे केरल का सम्पूर्ण राजनैतिक परिदृश्य साम्प्रदायिक विष से विषाक्त हो जायेगा । परन्तु कामरेड तमाम सिद्वांतों को भूल कर साम्प्रदायिकता का वर्जित सेब खाना चाहते है। यह अलग बात है कि यह सेब खाने के बाद वे भारत के स्वर्ग से बाहर धकेल दिये जायेंगे । लेकिन सत्ता के सेब के लालच ने उनकी ऑखों पर पट्टी बांध रखी है । ऐसा नहीं कि मदनी और उनकी पार्टी के इस सम्प्रदायिक चेहरे को सीपीएम वाले पहचान नहीं रहे । यहॉं तक कि मदनी से समझौता करने के प्रश्न पर सीपीएम के ही कुछ तपे तपाये और सिद्वांतवादी लोग खिन्न चित्त हैं ।केरल के माक्र्सवादी मुख्यमंत्री वी.एस. अज्युतानन्दन इसका विरोध कर रहे हैं । उन्होंने तो यहॉं तक कहा है कि केरल सरकार मदनी के आतंकवादियों से सम्बन्धों की जॉच भी करवा रही है । उनका मानना है कि मदनी जैसे साम्प्रदायिक आतंकवादियों से समझौते से सीपीएम की मूल पहचान समाप्त हो जायेगी और वह सत्ता लोलुप राजनैतिक दल के रूप में परिवर्तित हो जायेगी । परन्तु जैसा की राजनीति में होता है सत्ता के लालच में जब कोई भी राजनैतिक दल अपने सिद्वांत छोड़कर बाजार में निकल आता है तो उसके लिए मर्यादा की सभी सीमाएं अपने आप ही समाप्त हो जाती हैं । इसी के चलते सीपीएम ने सबसे पहले भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों से समझौता किया । केरल के सीपीएम के महासचिव विजय पिन्यारी कनाडा की किसी कम्पनी के साथ करोड़ों के घोटाले में संलिप्त पाये गये । प्रदेश के मुख्यमंत्री अच्युतानन्दन ने इसकी जॉच भी करवानी चाही , लेकिन सारी पोलित ब्यूरो विजय के साथ खड़ी हो गई । शायद एक कारण यह भी रहा होगा कि विजय की जॉच के बाद पता नहीं कितने चेहरे बेनकाब हो जायेंगे । भ्रष्टाचार से समझौता करने के बाद दूसरा पड़ाव अब्दुल नसार मदनी की पीपुल्स डेमोक्र ेटिक पार्टी के साथ समझौते का ही बचता था, जो सीपीएम ने पूरा कर दिखाया है । गॉंव की एक कथा है कि मेरा बेटा जुआ तब खेलता है जब शराब पी लेता है । शराब तभी पीता है जब मीट खा लेता है और मीट तभी खाता है जब उसे वेश्यालय में जाना होता है । वैसे बेटे में कोई दोष नहीं है । लगता है कार्ल माक्र्स के इस भारतीय बेटे की यही दशा हो रही है । माक्र्स भी सीपीएम के इस साम्प्रदायिक चेहरे को देखकर कब्र में अपने बाल नोच रहे होंगे ।

1 comment:

अनुनाद सिंह said...

सीपीएम -
* जिसने मुस्लिम लीग से साठगांथ की,
* जिसने बम-विस्फोट के जिम्मेदार मदानी का समर्थन किया,
* जिसने आज तक ओसामा बिन लादेन के विरुद्ध कुछ नहींकहा,
* जिसने बांग्लादेशी लेखिका तसलीमा को पहले बंगाल से निकाला और बाद में भारत-निकाला करवा दिया,
* जिसने बंगाल और पूर्वोत्तर भारत को बांग्लादेशियों से भर दिया -

सेक्युलर है। इसे ही सेक्युलरवाद की सही परिभाषा माना जाय ।